- नवरात्रि के ९ दिन सभी भक्तगण अपनी श्रद्धानुसार माता के ९ रूपों के पूजन पश्चात दशमी को राम लीला में लंका दहन और रावण वद्ध के द्वारा ख़ुशियाँ मनाते हैं।
- भगवान राम को इस मृत्युलोक में इंसान के रूप में जन्म लेकर रावण को मारने के लिए जब दैवीय शक्तियों की स्थापना करनी पड़ी, तो इसके लिए उन्होंने ९ दिनों तक सृष्टि की शक्ति का आह्वान किया था, जिसे आज हम नवरात्रि के पर्व के तौर पर हर साल याद करते हैं।
- श्रीराम के पहले भी चैत्र मास में नवरात्रि पूजन का विधान था, किंतु युद्ध की समाप्ति के लिए श्रीराम को अकाल हीं शरद ऋतु में नवरात्रि का अनुष्ठान करना पड़ा, इसलिए इसे “अकाल बोधन” के नाम से बंगाली भाषा में जाना जाता है।
आइए आज हम माता के ९ रूपों की व्याख्या सरल भाषा में समझें।
- ब्रह्मांड में, हिमालय की पुत्री देवी पार्वती एक गहन आध्यात्मिक साधना में तल्लीन रहती हैं, जहाँ वे समयानुसार जीवन के विभिन्न चरणों में नवदुर्गा के रूपों को धारण करती हैं। यह यात्रा न केवल देवी की शक्ति को दर्शाती है, बल्कि एक महिला के जीवन के सभी पहलुओं—बेटी, पत्नी, माँ, रक्षक, आशिर्वाद देने वाली का प्रतीक भी है।
1. शैलपुत्री – The Childhood
इस रूप में देवी को एक पुत्री रूप में पूजा जाता है। माता पार्वती का जन्म हिमालय के राजा हिमवान के घर हुआ था। इस रूप में उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है, जो प्रकृति और पवित्रता की प्रतीक हैं। इस चरण में, पार्वती का जीवन उनके प्राकृतिक परिवेश से गहराई से जुड़ा होता है, और वे अपनी आगे की कठिन यात्रा के लिए शक्ति और संकल्प एकत्र करती हैं।
2. ब्रह्मचारिणी – The Teenage
यह शादी से पहले का समय है। अपने अधूरेपन को पूर्ण करने के लिए, अर्द्धनारिश्वर के स्वरूप को संपूर्ण करने के लिए, शिव को प्राप्त करने के दृढ़ संकल्प के साथ, पार्वती कठिन तपस्या का मार्ग अपनाती हैं। ब्रह्मचारिणी के रूप में, वे कठोर तपस्या करती हैं, अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण प्राप्त करने और शिव को प्राप्त करने के लिए। यह चरण पार्वती की अद्वितीय भक्ति और उनकी आंतरिक शक्ति को दर्शाता है, जहाँ वे असीम धैर्य और समर्पण से शिव को प्रसन्न करती हैं।
3. चंद्रघंटा – The Young Lady
भगवान शिव द्वारा विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार किए जाने के बाद, पार्वती चंद्रघंटा के रूप में प्रकट होती हैं। उनके माथे पर अर्धचंद्र का घंटा है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। इस रूप में, पार्वती न केवल एक सुंदर वधू हैं, बल्कि युद्ध के लिए तैयार योद्धा भी हैं, जो हमेशा धर्म की रक्षा के लिए खड़ी रहती हैं। यह उनके विवाहित जीवन की शुरुआत का भी प्रतीक है, जहाँ वे शिव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी होती हैं।
4. कूष्मांडा – The Pregnant Lady
शिव से विवाह के बाद, पार्वती ब्रह्मांड की सृजनकर्ता के रूप में कूष्मांडा का रूप धारण करती हैं। उनकी रचनात्मक शक्ति से समूचे ब्रह्मांड की उत्पत्ति होती है। यह रूप पार्वती के उस चरण को दर्शाता है, जब वे सृजन की देवी बन जाती हैं और अपने मातृत्व की शुरुआत करती हैं। वह जीवन और ब्रह्मांड दोनों को पोषित करती हैं।
5. स्कंदमाता – The Mother
पार्वती कार्तिकेय (स्कंद/ या दक्षिण भारत में मुरुगन) को जन्म देती हैं, जो भविष्य में एक महान योद्धा और दानव तारकासुर का संहारक बनते हैं। स्कंदमाता के रूप में, वे एक स्नेही और संरक्षक माँ बनती हैं, जो अपने पुत्र को युद्ध के लिए तैयार करती हैं। इस रूप में पार्वती की मातृ शक्ति और उनके पुत्र के प्रति उनका असीम प्रेम और संरक्षण झलकता है।
6. कात्यायनी – The Middle age- Symbolic Rebirth
एक आम इंसान, प्रौढ़ावस्था के समय खुद को सँभाल नहीं पाता और वृद्धावस्था की ओर अग्रसर हो जाता है। किंतु जैसे-जैसे कार्तिकेय बड़ा होता है और अपने युद्धों के लिए तैयार होता है, पार्वती स्वयं कात्यायनी का रूप धारण करती हैं (उनका महर्षि कात्यायन के घर पुत्री रूप में सांकेतिक पुनर्जन्म होता है) जो अजरता एवं अमरत्व की प्राप्ति का प्रतीक है। यह रूप उनके जीवन के उस चरण को दर्शाता है, जब वे अपने व्यक्तिगत और पारिवारिक दायित्वों से ऊपर उठकर एक ताकतवर योद्धा के रूप में प्रकट होती हैं। यह देवी का आत्म-सशक्तिकरण और कठिनाइयों का सामना करने का चरण है।
7. कालरात्रि – The Fearless & Fearsome lady
यह एक ऐसे माता का रूप है, जो अपने बच्चों के लिए सारे संसार से लड़ सकती है। जब संसार में बुराई और अधर्म बढ़ता है, तो पार्वती अपने भयंकर रूप कालरात्रि में प्रकट होती हैं। यह उनका सबसे उग्र रूप है, जो अज्ञान, भय और बुराई का विनाश करने के लिए प्रकट होता है। इस चरण में पार्वती केवल व्यक्तिगत क्रोध नहीं दिखातीं, बल्कि वह संपूर्ण ब्रह्मांड से अंधकार और अधर्म का नाश करती हैं।
8. महागौरी – The Calm and Mature lady- जो बल से ज्यादा बुद्धि का प्रयोग करती हैं
कालरात्रि के विनाशकारी रूप के बाद, पार्वती अपने शांत और सौम्य रूप महागौरी में लौट आती हैं। यह रूप पवित्रता, शांति और करुणा का प्रतीक है। इस चरण में, पार्वती फिर से शिव के साथ मिल जाती हैं और ब्रह्मांड में संतुलन और शांति स्थापित करती हैं। महागौरी का रूप मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है।
9. सिद्धिदात्री – The Karm Yogini
अपनी यात्रा को पूर्ण करने के बाद, पार्वती सिद्धिदात्री का रूप धारण करती हैं, जो भक्तों को सिद्धियाँ (आध्यात्मिक शक्तियाँ) प्रदान करती हैं। इस रूप में, पार्वती अपने जीवन के सभी पहलुओं में महारत हासिल कर चुकी होती हैं, और अब वे उन सभी को उनके कर्मों के हिसाब से आशीर्वाद देती हैं, जो ज्ञान और मुक्ति की तलाश में होते हैं। यह रूप देवी के संपूर्ण ज्ञान और शक्ति का प्रतीक है।
निष्कर्ष:
नवदुर्गा के इन नौ रूपों के माध्यम से देवी पार्वती की यात्रा एक अद्वितीय परिवर्तन, आत्मनिर्भरता और ब्रह्मांडीय शक्ति की यात्रा है। यह कहानी न केवल देवी के रूपों को दर्शाती है, बल्कि एक महिला के जीवन के सभी चरणों—बेटी, तपस्विनी, युवती, मातृत्व, माता, दार्शनिक, योद्धा, आदर्शवादी और समाजसेवी- का भी प्रतीक है। पार्वती की यात्रा हर इंसान के जीवन में आने वाली चुनौतियों और आध्यात्मिक विकास को भी दर्शाती है, जो हमें आंतरिक शक्ति और ज्ञान की ओर प्रेरित करती है।हम इंसान भले हीं अमर नहीं हों, लेकिन देवी के रूपों का अनुसरण कर मोक्ष प्राप्ति कर सकते हैं, जहाँ हमारी कीर्ति इस भूमंडल पर अमर हो जाती है।
- अद्वैत सिद्धांतः God is One- it’s Nirakar- without any shape, it’s beyond birth or death. It’s omnipresent.
हममें तुममें खड़ग खंभ में, कण कण में भगवान
This concept is difficult to understand, so reserved only for those with deep understanding of Adhyatm. So our ancestors made it easy to understand by giving the concept of Ardhnarishwar, where there is a fusion of masculine energy and feminine energy each complementary to each other and none is superior or complete without another. This energy is made to look like human form for easy correlation. Though we consider presence of god in each and every particle of universe. We worship every single animal, plants, rivers, water bodies, and every aspect of nature.
To make it even simpler came the next concept
त्रिमूर्तिः our ancestors gave the concept of Trimurti where there are 3 major forms of masculine energy in form of Brahma, Vishnu & Mahesh, and 3 major forms of feminine energy in form of Saraswati, Lakshmi & Parvati. These 3 forms symbolises energies responsible for Creation, Nourishment & Destruction respectively.
- To create thins still simpler, our ancestors simplified things in the form of concept of Devata- the one who gives. Here you can worship a specific Devata according to what you desire. Like if you want Strength- you worship Hanuman, to gain knowledge- you worship Ganesh, and so on.
one can try to understand it as subjects of School, College and research. Ultimately all leading to the same result.